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शिवलिंग पर जल और कच्चा दूध चढ़ाने की परंपरा

इन दिनों वैशाख मास चल रहा है, जो 5 मई तक रहेगा। इस महीने में शिवलिंग के ऊपर एक पानी से भरी मटकी बांधने की परंपरा है। इस मटकी से बूंद-बूंद पानी शिवलिंग पर गिरता रहता है। वैशाख मास में ही ऐसा क्यों किया जाता है और इस परंपरा का क्या महत्व है। इससे जुड़ी कई कथाएं और मान्यताएं हमारे समाज में प्रचलित हैं। आज हम आपको इसी परंपरा से जुड़ी खास बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…


शिवलिंग को ऊपर जो पानी से भरी मटकी बांधी जाती है, उसे गलंतिका कहते है। गलंतिका का शाब्दिक अर्थ है जल पिलाने का करवा या बर्तन। इस मटकी में नीचे की ओर एक छोटा सा छेद होता है जिसमें से एक-एक बूंद पानी शिवलिंग पर निरंतर गिरता रहता है। ये मटकी मिट्टी या किसी अन्य धातु की भी हो सकती है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि इस मटकी का पानी खत्म न हो।

 

धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन करने पर सबसे पहले कालकूट नाम का भयंकर विष निकला, जिससे संसार में त्राहि-त्राहि मच गई। तब शिवजी ने उस विष को अपने गले में धारण कर लिया। मान्यताओं के अनुसार, वैशाख मास में जब अत्यधिक गर्मी पड़ने लगती है जो कालकूट विष के कारण शिवजी के शरीर का तापमान में बढ़ने लगता है। उस तापमान को नियंत्रित रखने के लिए ही शिवलिंग पर गलंतिका बांधी जाती है। जिसमें से बूंद-बूंद टपकता जल शिवजी को ठंडक प्रदान करता है।

 

शिवलिंग पर प्रतिदिन लोगों द्वारा जल और दूध अर्पित किया जाता है। इसके पीछे ही यही कारण है कि शिवजी के शरीरा का तापमान सामान्य रहे। गर्मी के दिनों तापमान अधिक रहता है इसलिए इस समय गलंतिका बांधी जाती है ताकि निरंतर रूप से शिवलिंग पर जल की धारा गिरती रहे।
शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा

कहा जाता अगर किसी को सर्प दंश हो जाय तो उस स्थान पर कच्चे दूध की धार गिराने से सारा विष निकल जाता है। भोलेनाथ पर विष का असर समाप्त करने के लिए कच्चे दूध से अभिषेक करते हैं। जिससे उन पर विष का असर क्रम हो जाये

ज्योतिष के अनुसार भी जल और दूध चंद्रमा के कारक हैं। चंद्रमा का सीधा संबंध हमारे ह्रदय व मन से होता है। सतयुग में जिस प्रकार चंद्रमा ने राजा दक्ष के श्राप से मुक्ति के लिए सोमनाथ ज्योतिर्लिंग बनाकर शिव भगवान जी की उपासना करके प्रसन्न किया फलस्वरूप भोलेनाथ ने उन्हें अपने शीश पर धारण किया ।उसी प्रकार से कलयुग में मात्र जल और दूध के चढ़ाने से भोलेनाथ बाबा प्रसन्न हो जाते हैं और ह्रदय से संबंधित शारीरिक और मानसिक दोनों कष्टों से मुक्ति मिलती है।

शिवलिंग पर जल और दूध से अभिषेक करते समय शिव पंचाक्षर मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

इसलिए ही शुरू हुई जल और दूध चढ़ाने की परंपरा

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