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राहु और केतु का प्रभाव

rahu ketu

 

राहु एवं केतू देव

ज्योतिषशास्त्र भारतीय विद्या का अभिन्न अंग है। हमारे ऋषि-मुनियों ने अपनी तपस्या एवं साधना से इस शास्त्र की रचना मानव जाति के उद्धार के लिए करी। समय के साथ ये विधा उतनी उन्नत नहीं रहीं जितनी वैदिक काल में थी फिर भी हमारे जीवन को उन्नत बनाने के लिए पर्याप्त है।

ज्योतिषशास्त्र का मुख्य आधार ग्रह एवं नक्षत्र हैँ। मुख्य ग्रहों की संख्या नौ है। जिनमे से सात ग्रह सूर्य चंद्र बुद्ध शुक्र मंगल ब्रहस्पति एवं शनि पिण्ड ग्रह क्योंकि इनका अस्तित्व ब्रह्मांड में उपस्थित है कहे जाते हैं। राहु एवं केतू छाया ग्रह कहे जाते हैं। छाया ग्रह मतलब इनका कोई पिण्ड या आकार नहीं है।

चंद्रमा प्रथ्वी के चक्कर लगाते हुए जब सुर्य पथ को जिस बिंदु पर काटते हैं उनमें से उत्तरी बिंदु केतू और दक्षिणी बिंदु राहु। ये एक खगोलिय बात है। लेकिन ज्योतिषीय आधार पर अलग धारणा है। इसके मत में एक प्राचीन कहानी है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक शक्तिशाली असुर था, स्वरभानु।उसकी मानसिक और बौद्धिक कौशल व क्षमता कमाल थी। शिव का उपासक भी था, और उस पर शंकर का वरदहस्त भी था। अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित और दृढ़ प्रतिज्ञ था। फलस्वरूप स्वरभानु ने कई अद्वितीय और विलक्षण आंतरिक शक्तियां प्राप्त कर लीं।

अमृत बटने के समय वो मोहिनी बने विष्णु की चाल को समझ कर देवो की पंक्ति में बैठ गया। सुर्य चंद्रमा ने पहिचान लिया और मोहिनी को बता दिया। इस पर मोहिनी बने विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया ।चूंकि अमृत पान कर लिया था इसी कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई अपितु कटा हुआ सिर राहु और धड़ सांप की पुंछ की तरह केतू बन गया।

ये जन्म कुंडली में आमने-सामने के भावों में रहते हैं माना अगर किसी कुंडली में राहु तीसरे भाव में हैं तो केतू नवम भाव में होंगे। हमेशा उल्टी दिशा में चलते हैँ।

वैसे तो राहु और केतु के फल जातक को अपनी कुंडली के अनुसार मिलते हैं परंतु इसका एक दार्शनिक पहलू भी है। ज्योतिषशास्त्र में सुर्य को आत्मा का और चंद्रमा को मन का कारक मानते हैं। राहु को सोच या विचार का और केतु को कर्म का कारक मानते हैं। सोच और कर्म का कोई आकर नहीं होता इसलिए राहु और केतु देव को छाया ग्रह कहा जाता है। चूंकि सुर्य और चंद्रमा ने पहिचान कर बताया था। इसलिए ये सबसे ज्यादा सूर्य /आत्मा और चंद्र/कर्म को प्रभावित करते हैं। कुंडली में यदि दोनों में से किसी एक के साथ भी राहु या केतू हों तो ग्रहण दोष बनता है। इस दोष में जातक को मानसिक परेशानी ज्यादा रहती है। अच्छी सोच और अच्छे कर्म से इस दोष को दूर करने में सक्षम है।

भोलेनाथ बाबा की पूजा से राहु और केतु के अशुभ फल के प्रभाव को दूर किया जा सकता है।

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