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बगलामुखी माता के प्राकट्य दिवस पर विशेष (28 अप्रैल)

जब जब विश्व पर कोई संकट आता है तब उसकी रक्षा करने के लिए माँ भगवती किसी न किसी शक्ति रूप में अवतरित होती हैं। चाहे वो असुरों का विनाश हो या भयंकर प्राकृतिक आपदा।

बगलामुखी माता

इसी प्रकार सतयुग की बात है। एक बार ब्रह्मांड में बहुत भयंकर तूफान उठा। वो इतना भयंकर था कि उससे समस्त प्राणी जगत का विनाश हो जाता।

विष्णु भगवान समस्त जगत के पालनहार हैँ। इसलिए सभी देवता और साधु-संत उनसे इस भयंकर तूफान को रोकने का आग्रह किया। तब भगवान विष्णु ने एक सरोवर के निकट माँ भगवती की स्तुति की जिससे प्रसन्न हो कर सरोवर में से एक देवी प्रकट हुई जो पीले वस्त्र धारण करे हुए थी। सभी देवताओं और साधु संतों ने बगलामुखी नाम से उनकी स्तुति करी।माता ने उस भयंकर तूफान को रोका व समस्त प्राणी जगत को भय मुक्त किया। पीले वस्त्र धारण करने के कारण उन्हें पिताम्बरी नाम से भी जाना जाता है। जिस सरोवर से प्रकट हुई उसे हरिद्रा सरोवर नाम से जाना जाता है। ये सरोवर मध्य प्रदेश के दतिया जिले में है। इसके पास ही बगलामुखी माता का शक्ति पीठ है।

बैशाख मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी को माँ अवतरित हुई अतः इस तिथि पर माँ का प्राकट्य दिवस बनाया जाता है।

दस महाशक्ति एवं महाविद्याओं की पूजा गुप्त नवरात्रि के रूप में की जाती है। जो साल में दो बार आते है। गुप्त नवरात्रि में बगलामुखी माता अष्टम शक्ति हैं।

राजनीति में सफलता, कोर्ट-कचहरी का मुकद्दमा जीतने के लिए, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए, वाक् सिद्धि के लिए ब्रहस्पति बार एवं शनिवार को माता रानी की विशेष पूजा की जाती है। माता अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें समस्त सुख प्रदान कर अंत में मोक्ष देती है।

‘ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलयं बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।

माता की पूजा से पहले हरिद्रा गणपति की आराधना करनी चाहिए।

माता रानी अपने सभी भक्तों के कष्ट दूर कर उन पर अपनी कृपा दृष्टि बनाय रखें।

जय माता दी

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